गांधी जयंती 2025: महात्मा गांधी के बारे में 10 रोचक तथ्य जो उनके अद्भुत प्रतिभा को साबित करते हैं (और क्यों कुछ आलोचक मुद्दे को समझ नहीं पा रहे हैं)

Politics 4 weeks, 1 day ago by Mdi

नमक सत्याग्रह की मास्टरस्ट्रोक: 1930 में गांधीजी ने ब्रिटिश नमक कर को चुनौती देते हुए डांडी तक 240 मील की पदयात्रा की और समुद्र से एक चुटकी नमक उठाकर ब्रिटिश शासन को हिला दिया। 60 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने युवा अनुयायियों से भी तेज चलकर बिना एक भी गोली चले पूरे देश में विद्रोह की चिंगारी जगा दी।

वैश्विक प्रतीक का दर्जा: गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे महान नेताओं को प्रेरित किया। अल्बर्ट आइंस्टीन ने उन्हें “मानवता के लिए एक प्रकाशस्तंभ” कहा। 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया, यह साबित करते हुए कि उनके विचार सीमाओं से परे हैं।

खादी क्रांति के जनक: गांधीजी ने अपने वकीली सूट छोड़कर हाथ से बुनी खादी अपनाई ताकि भारत के गरीबों के साथ खड़े रह सकें। उनके स्वदेशी आंदोलन ने ब्रिटिश वस्त्र उद्योग को झटका दिया और चरखा आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।

कैद में भी कर्मयोगी: गांधीजी ने भारत और दक्षिण अफ्रीका की जेलों में लगभग छह साल (2,089 दिन) बिताए। इस दौरान उन्होंने ‘सत्य के प्रयोग’ लिखी और स्वतंत्रता के लिए रणनीति बनाई। उन्होंने जेल को विचार केंद्र में बदल दिया।

एकता के लिए उपवास: कट्टर शाकाहारी गांधीजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता और अन्याय के विरोध में हफ्तों तक उपवास रखे—एक बार तो 21 दिन तक केवल पानी पर जीवित रहे। उनका बकरी का दूध और फलों वाला आहार अनुशासन और स्वास्थ्य का प्रतीक था।

अखबार के महारथी: दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने ‘इंडियन ओपिनियन’ नामक अखबार चलाया, जिसमें उन्होंने रंगभेद के खिलाफ तीखे लेख लिखे। उनके शब्दों ने हजारों लोगों को जगाया और उन्हें एक व्यक्ति की मीडिया सेना बना दिया।

जाति प्रथा के विरुद्ध योद्धा: गांधीजी ने अपने आश्रमों में ‘अछूतों’ (जिन्हें उन्होंने हरिजन कहा) के साथ मिलकर शौचालय साफ किए, जिससे उन्होंने समानता के अपने सिद्धांत को जीकर दिखाया। उस दौर में यह कदम बेहद क्रांतिकारी था।

हॉलीवुड का प्रेरणास्रोत: 1982 की फिल्म ‘गांधी’, जिसमें बेन किंग्सले ने मुख्य भूमिका निभाई, ने आठ ऑस्कर जीते और 22 मिलियन डॉलर की लागत से बनी। इसने गांधीजी की कहानी को पूरी दुनिया तक पहुंचाया, यह साबित करते हुए कि उनका जीवन ब्लॉकबस्टर से कम नहीं था।

कमियां और ईमानदारी: गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में अपनी गलतियों—प्रारंभिक पूर्वाग्रहों से लेकर पारिवारिक तनावों तक—को स्वीकार किया। अपनी सच्चाई और आत्मस्वीकारोक्ति के कारण वे एक आम इंसान की तरह लगते हैं, कोई दूर का संत नहीं।

पर्यावरण दृष्टा: गांधीजी की ग्राम अर्थव्यवस्था और सादगी की सोच आज के 2025 के सतत विकास घोषणापत्र जैसी लगती है। स्थानीय आत्मनिर्भरता पर उनके विचार आज के जलवायु संकट से निपटने का खाका हैं।

2025 में कुछ दक्षिणपंथी समूह गांधीजी की आलोचना क्यों कर रहे हैं

जहां गांधी जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साबरमती आश्रम में डाक टिकट जारी करते हैं और स्कूलों में ‘रघुपति राघव’ गूंजता है, वहीं कुछ दक्षिणपंथी हलकों में आलोचना का दौर चल रहा है। X (पूर्व ट्विटर) पर #GandhiJayanti2025 ट्रेंड के साथ कुछ पोस्ट उन्हें “अप्रासंगिक” बता रहे हैं। आइए देखें क्यों:

“तुष्टीकरण” के आरोप: कुछ हिंदू राष्ट्रवादी समूह, जिनमें आरएसएस के कट्टर समर्थक भी शामिल हैं, दावा करते हैं कि गांधीजी ने विभाजन के समय मुसलमानों का पक्ष लिया। वे उनके हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयासों को “अहिंदू” बताकर गलत अर्थ निकालते हैं।

गोडसे की विरासत: गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को कुछ चरमपंथी दक्षिणपंथी नायक मानते हैं, जो दावा करते हैं कि अहिंसा ने आजादी में देरी की या भारत को पाकिस्तान के सामने कमजोर बना दिया। गोडसे के मुकदमे पर 2024 की एक किताब ने इस बहस को फिर हवा दी।

अहिंसा बनाम राष्ट्रवाद: गांधीजी की अहिंसा की नीति आज के कुछ युवाओं के आक्रामक राष्ट्रवाद से टकराती है। X पर कई लोग उनके चरखे को “कमजोर” प्रतीक मानते हैं, जबकि आज तकनीक और रक्षा शक्ति को ताकत का प्रतीक समझा जाता है।

चुनिंदा आलोचनाएँ: आलोचक गांधीजी के शुरुआती जाति विचारों या ब्रह्मचर्य जैसे निजी प्रयोगों पर फोकस करते हैं, लेकिन उनके विकास और लाखों को एकजुट करने की भूमिका को नजरअंदाज करते हैं।

राजनीतिक मोहरा: 2024 के चुनावों के बाद गांधीजी का नाम राजनीतिक हथियार बन गया है। बीजेपी के विरोधी उन्हें कांग्रेस की आलोचना में इस्तेमाल करते हैं, जबकि कुछ कांग्रेसी नेता दक्षिणपंथ पर उनकी विरासत मिटाने का आरोप लगाते हैं। वे आज भी उसी एकता के आदर्श से दूर एक खींचतान में फंसे हैं।